असल में माता सीता ने नहीं दी थी अग्नि परीक्षा जानिये पूरा सच …..
रामायण की कथा दरअसल मनुष्य को मर्यादा की शिक्षा और धर्म के मार्ग में चलने की प्रेणा देती है, वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ग्रन्थ संस्कृत का एक महाकाव्य है. इसके माध्यम से रघुवंश के राजा व मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम की गाथा कही गयी है.
परन्तु कुछ ऐसी भी घटनाये रामायण से जुडी है जिनसे आप शायद ही परिचित हो जैसे देवी सीता का अपनी पवित्रता के लिए अग्नि परीक्षा में बैठने का मुख्य उद्देश्य तो कुछ और ही था. यह भगवान श्री राम एवम ब्रह्मा जी की लीला में से एक था. आखिर क्या थी वह लीला आइये जानते है पूरा सच.
जब भगवान श्री राम देवी सीता एवम अनुज लक्ष्मण के साथ वन में अपने वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे उसी दौरान उनका सुपर्णखा एवम उसके दो भाई खर और दूषण से समाना हुआ. श्री राम ने खर और दूषण को उनके अपराध के लिए दण्डित किया और उनका वध कर दिया वही अनुज लक्ष्मण ने सुपर्णखा को दण्डित किया.
खर दूषण के वध करने के पश्चात एक भगवान श्री राम देवी सीता से बोले. प्रिये अब मैं अपनी लीला शुरू करने जा रहा हूँ . खर दूषण मारे गए, सूर्पनखां जब यह समाचार लेकर लंका जाएगी तो रावण आमने सामने की लड़ाई तो नहीं करेगा बल्की कोई न कोई चाल खेलेगा
और मुझे अब दुष्टों को मारने के लिए लीला करनी है . जब तक मैं पूरे राक्षसों को इस धरती से नहीं मिटा देता तब तक तुम अग्नि की सुरक्षा में रहो.
तब श्री राम की आज्ञा से ब्रह्म देव वहां प्रकट हुए तथा उन्होंने देवी सीता जैसे ही दिखने वाली एक प्रितबिंब का निर्माण किया. भगवान श्री राम ने अपने तरकश से एक तीर निकाला तथा ब्रह्म मन्त्र का उच्चारण कर तीर छोड़ा जिससे वहां अग्नि प्रज्वलित हो गई.
तब देवी सीता ने प्रभु श्री राम की आज्ञा पाकर उस प्रज्वलित अग्नि में अपने आप को सुरक्षित कर लिया तथा ब्रह्म देव द्वारा रचित देवी सीता के प्रतिबिम्ब ने उनका स्थान लिया.
रावण जिनका हरण करके ले गया था वह देवी सीता नहीं वरन उनका प्रतिबिम्ब था. रावण के पाप का अंत करने के पश्चात भगवान श्री राम ने अपनी एक और लीला रचाते हुए देवी सीता के प्रतिबिम्ब से अग्नि परीक्षा की बात कही जहां देवी सीता पहले से ही अग्नि के घेरे में सुरक्षित ध्यान मुद्रा में थी.
अपने प्रतिबिम्ब का संयोग पाकर देवी सीता ध्यान मुद्रा से बाहर आई तथा प्रभु श्री राम से उनकी भेट हुई.
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