जानिये कहाँ बरगद पेड़ की शाखाओं ने लोहे के चादर को भी फाड़ दिया…!!!!!
सिद्धवट घाट
उज्जैन का सिध्दवट प्रयाग के अक्षयवट, वृन्दावन के वंशीवट तथा नासिक के पंचवट के समान अपनी पवित्रता के लिए प्रसिध्द है। इसे शक्तिभेद तीर्थ के नाम से जाना जाता है। पुण्यसलिला क्षिप्रा के सिध्दवट घाट पर अन्त्येष्टि-संस्कार सम्पन्न किया जाता है। स्कन्द पुराण में इस स्थान को प्रेत-शिला-तीर्थ कहा गया है। स्कंद पुराण अनुसार पार्वती माता द्वारा लगाए गए इस वट की शिव के रूप में पूजा होती है। पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी को यहीं पर सेनापति नियुक्त किया गया था। यहीं उन्होंने तारकासुर का वध किया था। एक मान्यता के अनुसार पार्वती ने यहाँ तपस्या की थी। सिध्दवट के तट पर क्षिप्रा में प्राचीनकाल से ही अनेक कछुए पाए जाते है।
एक किंवदंती के अनुसार एक बड़ा बरगद का पेड़ काट दिया गया तथा पूरा इलाका लोहे की चादरों से ढक दिया गया था। लेकिन हैरत की बात यह है कि बरगद की शाखाएँ लोहे की चादर में छेद करके बाहर निकल आई थी। उस दिन से, स्थानीय लोग इस जगह को पवित्र मानते है। नाथ संप्रदाय के लोग इस जगह पर पूजा भी करते हैं।
यहाँ तीन तरह की सिद्धि होती है संतति, संपत्ति और सद्गति। तीनों की प्राप्ति के लिए यहाँ पूजन किया जाता है। सद्गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है। संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्विक) बनाया जाता है। यह वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है। यहाँ पर नागबलि, नारायण बलि-विधान का विशेष महत्व है। संपत्ति, संतित और सद्गति की सिद्धि के कार्य होते हैं। यहाँ पर कालसर्प शांति का विशेष महत्व है, इसीलिए कालसर्पदोष की भी पूजा होती है
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