पढ़े माँ चंद्रघंटा के बारे में..!!कैसे पड़ा उनका नाम..!!!
पढ़े माँ चंद्रघंटा के बारे में..!!कैसे पड़ा उनका नाम..!!!
आज हम आपको बता रहे है माँ दुर्गा के तीसरे स्वरुप माँ चंद्रघंटा के बारे में।माँ चंद्रघंटा के मस्तक में घंटे का आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण से इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। माँ की कृपा से अलौकिक वस्तुओं के दर्शन होते हैं, दिव्य सुगंधियों का अनुभव होता है तथा विविध प्रकार की दिव्य ध्वनियाँ सुनाई देती हैं। ये क्षण साधक के लिए अत्यंत सावधान रहने के होते हैं।माँ का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। देवी चंद्रघंटा का वाहन सिंह है।इनकी दस भुजाएं और तीन आंखें हैं,आठ हाथों में खड्ग, बाण आदि दिव्य अस्त्र-शस्त्र हैं और दो हाथों से ये भक्तों को आशीष देती हैं।इनकी आराधना से वीरता-निर्भयता के साथ ही सौम्यता एवं विनम्रता का विकास होकर मुख, नेत्र तथा संपूर्ण काया में कांति-गुण की वृद्धि होती है।
इनका संपूर्ण शरीर दिव्य आभामय है।इनके दर्शन से भक्तों का हर तरह से कल्याण होता है।माता भक्तों को सभी तरह के पापों से मुक्त करती हैं।इनकी पूजा से बल और यश में बढ़ोतरी होती है।स्वर में दिव्य अलौकिक मधुरता आती है।देवी की घंटे-सी प्रचंड ध्वनि से भयानक राक्षसों आदि भय खाते हैं।
माँ चंद्रघंटा के पूजा वाले दिन गाय के दूध का प्रसाद चढ़ाने का विशेष विधान है। इससे हर तरह के दुखों से मुक्ति मिलती है।
॥ जय माँ चंद्रघंटा ॥
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