देवउठनी एकादशी पर करें पितृदोष निवारण हेतु यह 4 उपाय, चूके नहीं :
हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत का स्थान महत्वपूर्ण है। हर वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़ जाती है और 26 हो जाती है। आषाढ शुक्ल एकादशी को देव-शयन हो जाने के बाद से प्रारम्भ हुए चातुर्मास का अंत कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन देवोत्थान-उत्सव होने पर होता है। वैष्णव ही नहीं, स्मार्त श्रद्धालु भी बडी आस्था के साथ इस दिन व्रत करते हैं।
विष्णु भगवान आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। इसीलिए कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इसे हरि प्रबोधिनी एकादशी तथा देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है। ऐसा कहते हैं कि देवोत्थान एकादशी का व्रत करने से हजार अश्वमेघ एवं सौ राजसूय यज्ञ का फल मिलता है।
- पितृदोष से पीड़ित लोगों को देवउठनी एकादशी के दिन विधिवत व्रत करना चाहिए। पितरों के लिए यह उपवास करने से अधिक लाभ होता है जिससे उनके पितृ नरक के दुखों से छुटकारा पा सकते हैं।
- इस दिन भगवान विष्णु जी या अपने इष्ट-देव की उपासना करना चाहिए। इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः “मंत्र का जाप करने से लाभ तथा पुण्य प्राप्त होता है।
- भगवान शालीग्राम के साथ तुलसी का आध्यात्मिक विवाह देव उठनी एकादशी को होता है। इस दिन तुलसी की पूजन का महत्व है। तुलसी दल अकाल मौत से बचाता है। भगवान शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है।
- इस दिन देवउठनी एकादशी की पौराणिक कथा का श्रावण या वाचन अवश्य करना चाहिए। कथा सुनने या वाचन से पुण्य की प्राप्ति भी होती है।
श्रीहरि को जगाने के लिए इस मंत्र का अवश्य जाप करना चाहिए- “उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पते। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गता मेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।”
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