अद्भुत है माँ दुर्गा का यह मंदिर जिस भक्त से होती है खुश उसका ढाई प्याले मदिरा का भोग करती है स्वीकार..!!!
आज हम बात कर रहें है राजस्थान के मां दुर्गा के प्राचीन मंदिर भवाल माता मंदिर के बारे में । स्थानीय लोग भवाल माता को भुवाल अथवा भंवाल भी कहते हैं। यह मंदिर नागौर जिले की रियां तहसील में है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है यह मंदिर अत्यंत चमत्कारी है। यह मंदिर इसलिए भी अद्भुत है क्योंकि कहते हैं कि यहां मां दुर्गा जिस भी भक्त से खुश होती है उससे ढाई प्याले मदिरा का भोग स्वीकार करती हैं। इस मंदिर में देवी के दो रूप
विराजमान हैं काली और ब्रह्माणी। बताते है कि देवी के ये दोनों रूप स्वत: प्रकट हुए थे। इन दोनों ही रूपों से जुड़े हुए कई चमत्कार हैं। मंदिर में आने वाले भक्त ब्रह्माणी देवी को मिठाई का भोग चढ़ाते हैं और काली को मदिरा। जो इस मंदिर में दर्शन करने आते हैं, उनका कहना है कि यह सिद्ध
चमत्कारी स्थान है। यहां आने वाला कभी निराश होकर नहीं जाता। मदिरा भेंट करने के बारे में कहा जाता है कि इसके लिए पहले से ही प्रसाद बोलना पड़ता है। कार्य सिद्ध होने के बाद फिर उसी मूल्य की भेंट स्वीकार की जाती है। जब श्रद्धालु इस मंदिर में मदिरा लेकर आता है तो पुजारी उससे चांदी का प्याला भरता है। इसके बाद पश्चात वह देवी के होठों तक प्याला लेकर जाता है। इस समय देवी के मुख की ओर देखना वर्जित होता है। माता अपने भक्त से प्रसन्न होकर तुरंत ही वह मदिरा स्वीकार कर लेती हैं। प्याले में एक बूंद भी बाकी नहीं रहती। पुजारी उस प्याले को पूरा उल्टा कर यह दिखा
देता है कि इसमें एक बूंद तक शेष नहीं है। माता उस भक्त से प्रसन्न है।
मंदिर के इतिहास के बारे में जानकारों के अनुसार, पहले यह इलाका वीरान था। खेजड़ी के एक पेड़ के नीचे देवी की दोनों प्रतिमाएं प्रकट हुई थीं। एक कथा के अनुसार विक्रम सम्वत् 1050 में डाकुओं का एक दल राजा की सेना से घिर गया था। तब उन्होंने देवी का स्मरण किया। देवी की कृपा से राजा की सेना की दृष्टि बदल गई। उन्हें सभी डाकू भेड़-बकरी जैसे दिखने लगे। प्राण रक्षा करने पर डाकुओं ने देवी को प्रसाद चढ़ाना चाहा, परंतु उनके पास
मदिरा के अलावा और कुछ नहीं था। इसलिए उन्होंने मदिरा ही देवी को चढ़ा दी। उनके आश्चर्य का तब कोई ठिकाना नहीं रहा जब देवी ने पूरा प्याला भरकर मदिरा का भोग स्वीकार कर लिया। इससे डाकू चकित रह गए। देवी ने डाकुओं से कुल ढाई प्याले मदिरा का भोग स्वीकार किया था। बताया जाता है कि देवी की कृपा से उन डाकुओं ने डकैती छोड़ दी। देवी को ढाई प्याले मदिरा चढ़ाने की वह परंपरा आज तक जारी है।
॥ जय भवाल माता ॥
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