भगवान् महाकाल की भस्म आरती : एक अनोखी परंपरा और भस्म आरती का महत्व..!!!
शिवजी के पूजन में भस्म अर्पित करने का विशेष महत्व है। बारह ज्योर्तिलिंग में से एक उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर में प्रतिदिन विशेष रूप से भस्म आरती की जाती है। भस्म आरती, एक रहस्यमयी, अस्वाभाविक और असामान्य अनुष्ठान है और पुरे विश्व में सिर्फ उज्जैन के महाकाल मंदिर में ही किया जाता है। ज्योतिर्लिंग मतलब वह स्थान जहां भगवान शिव ने स्वयं लिंगम स्थापित किए थे। जानिये शिवपुराण के अनुसार शिवलिंग पर क्यों अर्पित किया जाता है भस्म-
शिवपुराण के अनुसार सृष्टि का सार भस्म है। एक दिन संपूर्ण सृष्टि इसी राख के रूप में परिवर्तित हो जानी है। इस सृष्टि के सार भस्म यानी राख को शिवजी सदैव धारण किए रहते हैं। इसका यही अर्थ है कि एक दिन यह संपूर्ण सृष्टि शिवजी में विलीन हो जानी है।
ऐसी मान्यता है कि वर्षों पहले श्मशान के भस्म से भूतभावन भगवान महाकाल की भस्म आरती होती थी लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो चुकी है और अब शिवपुराण के लिए अनुसार भस्म तैयार करने के लिए कपिला गाय के गोबर से बने कंडे, शमी, पीपल, पलाश, बड़, अमलतास और बेर के वृक्ष की लकडिय़ों को एक साथ जलाया जाता है। इस दौरान उचित मंत्रोच्चार किए जाते हैं।
दरअसल महाकाल की आरती भस्म से होने के पीछे ऐसी मान्यता है कि महाकाल श्मशान के साधक हैं और यही इनका श्रृंगार और आभूषण है और उन्हें नित्य सुबह जगाने की विधि है। इसीलिए भस्मारती सुबह 4 बजे होती है।
शिवजी को अर्पित की गई भस्म का तिलक लगाना चाहिए। महाकाल की पूजा में भस्म का विशेष महत्व है और यही इनका सबसे प्रमुख प्रसाद है। ऐसी धारणा है कि शिव के ऊपर चढ़े हुए भस्म का प्रसाद ग्रहण करने या लगाने मात्र से रोग दोष से मुक्ति मिलती है,अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और कई जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है
भस्म की यह विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसे शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्म धारण करने वाले भगवान शिव संदेश देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढाल लेना चाहिए।
भस्म आरती के दौरान जब ज्योतिर्लिंग पर भस्म न्यौछावर की जाती है उस दृश्य को देखना महिलाओं के लिए वर्जित है। इसलिए उस समय कुछ मिनटों के लिए महिलाओं को घूंघट करना अनिवार्य होता है।
आरती के दौरान पुजारी एक वस्त्र धोती में होते हैं। इस आरती में अन्य वस्त्रों को धारण करने का नियम नहीं है।
उज्जैन में महाकाल के प्रकट होने के विषय में कथा है कि दूषण नाम के असुर से लोगों की रक्षा के लिए महाकाल प्रकट हुए थे। दूषण का वध करने के बाद भक्तों ने जब शिव जी से उज्जैन में वास करने का अनुरोध किया तब महाकाल ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ।
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