भोलेनाथ की ‘अर्धकाशी’, यहां शिव के अंगूठे की होती है पूजा :
यहां पर शिव भगवान के अंगूठे की पूजा होती है।
भगवान शिव के सभी मंदिरों में उनके शिवलिंग की पूजा होती है लेकिन माउंट आबू में अचलगढ़ दुनिया की इकलौती ऐसी जगह है, जहां भगवान शंकर के अंगूठे की पूजा होती है। शिव भगवान के अंगूठे के निशान मंदिर में आज भी देखे जा सकते हैं। यहां भगवान शिव के छोटे-बड़े 108 मंदिर स्तिथ है। यही कारण से ही इसे अर्धकाशी भी कहा जाता है।
माउंटआबू की पहाड़ियों पर स्थित अचलगढ़ मंदिर एक पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर की काफी मान्यता है तथा माना जाता है कि इस मंदिर में महाशिवरात्रि, सोमवार के दिन और सावन महीने में जो भी भगवान शिव के दरबार में आता है, भगवान शंकर उसकी मुराद पूरी कर देते हैं।
मंदिर की पौराणिक कहानी
कहा जाता है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन हिलने लगा तो हिमालय में तपस्या कर रहे भगवान शंकर की तपस्या भंग हो गई थी। क्योंकि इस पर्वत पर भगवान शिव की प्यारी गाय कामधेनु व बैल नंदी भी थे। पर्वत के साथ नंदी व गाय को बचाने के लिए भगवान शंकर ने हिमालय से ही अंगूठा फैलाया तथा अर्बुद पर्वत को स्थिर कर दिया।
आज भी है यहां भगवान शिव के पैरों के निशान
15वीं शताब्दी में बना अचलेश्वर मंदिर में शिव भगवान के पैरों के निशान आज भी मौजूद है। यहां भगवान भोले अंगूठे के रुप में विराजते हैं एवं शिवरात्रि में इस रूप के दर्शन का विशेष महत्व है।
जानिए पानी का रहस्य :
यहां पर भगवान शिव के अंगूठे के नीचे एक प्राकृतिक गड्ढा बना हुआ है। इस गड्ढे में कितनी भी पानी डाली जाए, परंतु वह कभी भरता नहीं है। इसमें चढ़ाया जाने वाला पानी कहां जाता है? यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है।
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